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मातृभूमि  कविता -  सहायक सामग्री.


First Bell 2.0 Plus two Hindi Class 02


मातृभूमि  कविता

First Bell 2.0 Plus two Hindi Class 03



 मातृभूमि  कविता-  सहायक सामग्री

മാതൃഭൂമി

...............

പ്രകൃതിയുടെ പച്ചപ്പിൽ നീലാകാശപ്പുടവയുടുത്ത 

നീ എത്ര മനോഹരിയാണ് !

കിരീടമായ് സൂര്യ - ചന്ദ്രൻ മാരും - അരഞ്ഞാണമായ് അലസമായൊഴുകുന്ന സമുദ്രവും നിൻ്റെ അഴകായ് തിളങ്ങുന്നു !

ദേശവാസികളോടുള്ള പ്രമ പ്രവാഹം പോലെ

നിൻ്റെ മാറിലൂടെ നദികൾ ഒഴുകിക്കൊണ്ടിരിക്കുന്നു.

പൂക്കളും നക്ഷത്രങ്ങളും ആഭരണമായ് പരിലസിയ്ക്കുന്നു. !

വിഹഗ വൃന്ദങ്ങളുടെ കളകളാരവം

സ്തുതിഗീതങ്ങളായ് മുഴങ്ങുന്നു !

അനന്ത നാഗത്തിൻ്റെ ഫണമാണ് നിൻ്റെ ഇരിപ്പിടം...

മേഘങ്ങൾ പെയ്തിറങ്ങാൻ കൊതിയ്ക്കുന്ന അനുപമ സൗന്ദര്യമേ !

സമർപ്പിയ്ക്കട്ടെ നിൻ മുൻപിൽ ഞാൻ എന്നെത്തന്നെ !

ഭാരത മാതാവേ ! നീ സർവ്വേശ്വരൻ്റെ സർവ്വ ഗുണസമ്പന്നമായ സൃഷ്ടിയല്ലൊ ,..

ഈ മണ്ണിലിഴഞ്ഞ് ഞാൻ വളർന്നു...

മുട്ടിലിഴഞ്ഞ് നിൽക്കാൻ പഠിച്ചു...

അനശ്വരമായ പരമാനന്ദത്തെ 

ബാല്യത്തിൽ തന്നെ കൈവരിച്ച ശ്രേഷ്ഠ മുനി ശ്രീരാമകൃഷ്ണനെപ്പോലെ

എത്രയോ സാത്വിക ജൻമങ്ങളാൽ പവിത്രമാണീ മണ്ണ് !

നിൻ്റെ മടിത്തട്ടിലെ വാത്സല്യമുണ്ടാണ് ഞങ്ങൾ കളിച്ചു വളർന്നത്.'

ഹേ ഭാരതാംബെ !നിന്നെ കാണുമ്പോൾ

എങ്ങനെ ആത്മനിർവൃതിയില്ലാതിരിക്കും !

നീ തന്ന സന്തോഷങ്ങൾക്കു പകരം വെയ്ക്കാൻ

എന്നിലെന്തുണ്ട് !

അന്നവും ജലവും നിറഞ്ഞ ഈ ദേഹം നിൻ്റെതു തന്നെ !

നിശ്ചലമാകുമ്പോൾ നിന്നിലേയ്ക്കു മടങ്ങുന്നവ ർ !

ജഡമായ് തീരുമ്പോൾ

നിന്നിലലിഞ്ഞു ചേരുന്നതല്ലോ ഈ ദേഹം !


പരിഭാഷ. 

ഡോ. സംഗീത പൊതുവാൾ



മാതൃഭൂമി   (മൊഴിമാറ്റം  

ഹരിത തടങ്ങളിൽ ശോഭിപ്പൂ  നീലവസ്ത്രം

സൂര്യ ചന്ദ്ര കിരീടവും ,സമുദ്രമാം  അരഞ്ഞാണവും

സ്നേഹ പ്രവാഹമായ്‌ നദികളും , പുഷ്പ നക്ഷത്ര  മോടിയും,

സ്തുതി പാഠകരാം പക്ഷിവൃന്ദവും ,ശേഷഫണമാം സിംഹാസനവും

മേഘമാല തൻ  അഭിഷേകവും ,ഹാ ! ബലിയർപ്പിതമീ രൂപത്തിൻമുന്നിൽ

ഹേ ! മാതൃഭൂമി ,നീ സർവേശ്വരൻ  തൻ സഗുണമൂർത്തി സത്യമിതുതാൻ

നിൻ  പൊടിപടലത്തിൽ  കളിച്ചു വളർന്നതും ,

മുട്ടിലിഴഞ്ഞിഴഞ്ഞു നില്ക്കാൻ പഠിച്ചതും

പരമഹംസനേ  പോൽ ബാല്യത്തിൽ സുഖമനുഭവിച്ചതും

പൊടിപുരണ്ട നാം രത്‌നമെന്നറിയപ്പെട്ടതും,

നിൻ മടിത്തട്ടിലല്ലയോ  ഞങ്ങൾ  ആമോദത്തോടെ  കളിച്ചു വളർന്നതും

 ഹേ ! മാതൃഭൂമി ,നിന്നെക്കണ്ടാൽ  ആനന്ദത്താൽ ഉല്ലസിക്കാതിരിക്കുമോ യെൻ മനം

സുഖമെല്ലാം  അനുഭവിച്ചതും  നിന്നാൽ

പ്രത്യുപകാരം  എന്തെങ്കിലും ചെയ്യുവാനൊക്കുമോ ?

ഈ ദേഹം  നിന്റെതാം ,നിന്നിൽ നിന്നുണ്ടായതാം,

നിന്നിലെ  സ്നേഹാമൃതത്താൽ  നനഞ്ഞതാം ,

അവസാന ശ്വാസത്തിൽ  അചഞ്ചലമാം ദേഹത്തെ  നീ നിന്നിലേക്കെടുക്കതും

ഹേ !മാതൃഭൂമി  അവസാനമിത് നിന്നിൽ തന്നെ  ലയിപ്പതും.

 

 (മൊഴിമാറ്റം )  

നാരായണൻ K V ,

AKASGVHSS  PAYYANUR  KANNUR 


1 ‘मातृभूमि’ नामक कविता किसकी रचना है ?

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त  की

2 ‘मातृभूमि’ किस युग की कविता है ?  

द्विवेदी युग

3, मातृभूमि का वस्त्र  या परिधान क्या है ?

नीला आकाश 

4, मातृभूमि का  मुकुट  क्या है ?

सूर्य और चंद्र

5, मातृभूमि की मेखला क्या है ?

रत्नाकर या समुद्र

6, मातृभूमि का मंडन या आभूषण क्या है ?

फूल और तारे

7, कवि की राय में भारवासियों की देह किससे बनी हुई है ?

मातृभूमि से /मिट्टी से

8, मातृभूमि किसकी सगुण मूर्ति है ?

ईश्वर की

9, मातृभूमि का प्रेम  प्रवाह क्या है ?

नदियां 

10, रत्नाकर शब्द का समानार्थी शब्द क्या है ?

समुद्र

11, धूलि’ का समानार्थी शब्द क्या है ?

रज

12, मातृभूमि का सिंहासन क्या है ?

शेषनाग का फन

13, कौन मातृभूमि के ऊपर पानी का अभिषेक करता है ?

पयोद या बादल

14, कौन सदा समय मातृभूमि की स्तुति गीत करते हैं ?

पक्षियों का समूह

15, बचपन में कवि किसके समान सब सुख पाए थे ?

परमहंस के समान

16 कवि मातृभूमि केलिए क्या करना चाहते हैं ?        

 आत्म समर्पण

 

एक या दो वाक्य में उत्तर लिखिए।

1, ‘मातृभूमि’ नामक कविता किसकी रचना है ?

 ‘मातृभूमि’ नामक कविता राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की  रचना है 

2, मैथिलीशरण गुप्त जी का जन्म कहाँ हुआ ?

 मैथिलीशरण गुप्त जी का जन्म उत्तर प्रदेश के चिर्गाव में हुआ 

3, गुप्त जी की प्रसिद्ध रचनाए क्या क्या हैं ?

साकेतयशोधरा,जयद्रथ वधपंचवटी आदि गुप्त जी की प्रसिद्ध रचनाए  हैं ।

4, देश ने गुप्त जी को कोन सा उपधि देकर सम्मानित किया ?

 देश ने गुप्त जी को पद्मभूषण उपधि देकर सम्मानित किया 

5मातृभूमि नामक कविता द्वारा कवि क्या बताना चाहते हैं ?

मातृभूमि  नामक कविता द्वारा कवि बताना चाहते हैं कि   भारत माता की मिटटी के अन्न और जल से बने हमारे शरीर देश की संपत्ति है । भारतवासियों को देश केलिए अपना जीवन समर्पण करना चाहिए।

6मातृभूमि का वस्त्र  या परिधान क्या है ?

नीला आकाश  मातृभूमि का वस्त्र या परिधान है।

7मातृभूमि का  मुकुट  क्या है ?

सूर्य और चंद्र मातृभूमि के  मुकुट हैं 

8मातृभूमि की मेखला या करधनी क्या है ?

मातृभूमि की मेखला या करधनी रत्नाकर या समुद्र है।

9मातृभूमि का मंडन या आभूषण क्या है ?

मातृभूमि का मंडन या आभूषण फूल और तारे हैं ।

10मातृभूमि का प्रेम  प्रवाह क्या है ?

नदियां  मातृभूमि का प्रेम प्रवाह हैं ।

11मातृभूमि का सिंहासन क्या है ?

शेषनाग का फन मातृभूमि का सिंहासन है।

12कौन मातृभूमि के ऊपर पानी का अभिषेक करता है ?

पयोद या बादल मातृभूमि के ऊपर पानी का अभिषेक करता है।

13कौन सदा समय मातृभूमि की वंदना करते हैं ?

खगवृंद या चिड़ियां सदा समय मातृभूमि की वंदना करते हैं।

14बचपन में कवि किसके समान सब सुख पाए थे ?

बचपन में परमहंस के समान सब सुख पाए थे।


1     तेरा प्रत्युपकार कभी क्या हमसे होगा  l कवि इस प्रकार क्यों सोचते हैं ?

मातृभूमि माँ के समान है।  हमारा सबकुछ मातृभूमि से मिली है। जिस प्रकार माँ की ममता का प्रत्युपकार नहीं  कर सकते  उसी प्रकार मातृभूमि का भी प्रत्युपकार हम नहीं कर सकते। यह देह, यह जीवन और अंत में हमें स्वीकार करनेवाला भी मातृभूमि है। माँ की निस्वार्थ सेवाओं केलिए प्रस्तुपकार कभी नहीं कर सकते।

 मातृभूमि से कवि का बचपन कैसे जुडा है ?

हम जन्मभूमि से कवि का बचपन का संबंध व्यक्त करते हुए कवि कहते हैं कि इसके धूली मे लोट लोटकर बडे हुए है। इसी भूमि पर घुटनों के बल पर सरक सरक कर ही पैरों पर खड़ा रहना सीखा। यहाँ रहकर ही बचपन में उसने श्रीरामकृष्ण परमहंस की तरह सभी आनंद पाया। इसके कारण ही उसे धूली भरे हीरे कहलाये। इस जन्मभूमि के गोदी में खेलकूद करके हर्ष का अनुभव किया है। 

3 कवि ने मातृभूमि का वर्णन किस प्रकार किया है ?  

 मातृभूमि के हरे-भरे तट पर आकाश नीले रंग के वस्त्र की तरह शोभित है। सूर्य और चन्द्र इस भूमि का मुकुट है और समुद्र करधनी है। नदियाँ प्रेम प्रवाह है और फूल-तारे आभूषण है। बंदीजन पक्षियों का समूह है और शेष नाग का फन सिंहासन है। बादल पानी बरसाकर उसका अभिषेक करते रहते हैं। इस तरह की सगुण साकार मूर्ति है मातृभूमि।

 

4  कवि परिचय 

  मातृभूमि नामक कविता राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की  रचना है  मैथिलीशरण गुप्त जी का जन्म उत्तर प्रदेश के चिर्गाव में हुआ  साकेतयशोधरा,जयद्रथ वधपंचवटी आदि गुप्त जी की प्रसिद्ध रचनाए   हैं । देश ने गुप्त जी को पद्मभूषण उपाधि देकर सम्मानित  किया  मातृभूमि  नामक कविता द्वारा कवि बताना चाहते हैं कि भारत माता की मिटटी के अन्न और जल से बने हमारे शरीर देश की संपत्ति है ।भारतवासियों को देश केलिए अपना जीवन समर्पण करना चाहिए।

साराँश

para (l)

            इन पंक्तियों में कवि भारत माता के सुंदर  रूप का वर्णन करते हुए उसकी वंदना करते है। कवि कहते है हमारी हरी भरी धर्ती के ऊपर आकाश एक नीले वस्त्र के समान शोभित है। भारत माता सूर्य और चंद्र को मुकुट बनाकर दिन और रात में धर्ती को प्रकाशित करती है। समुद्र रत्नों का खजाना हैउसे वह करधनी बनायी है। नदियों से प्यार बहा कर सबको प्यार पहुँचाती है वह । फूल और तारे उसे सुंदर बनाते है। चिडियाँ उसकी वंदना करने वाले स्तुति पाठक है। महाविष्णु के नाग आदि शेष का फन इस धर्ती का सिंहासन है । अर्थात यह देश केा सदा ईश्वर का अनुग्रह प्राप्त है। कवि मातृभूमि को ईश्वर का सगुण मूर्ति समझता है I

Para (ll)

              इन पंक्तियों में धर्ती के प्रति गुप्तजी का असीम प्यार हम देखते है। कवि कहते हैतेरी मिट्टी मेंलोट लोट कर बच्चा बड़ा बनता है। तेरी  मिट्टी में घुटने लगाकर ही वह उठना सीखता है। मिट्टी का महत्व बताने केलिए कवि रामकृष्ण परमहंस का दृष्टांत देकर कहते हैहमारी मातृभूमि छोटे बच्चों केा भी आध्यात्मिक ज्ञाान प्रदान करने में सक्षम है। उस मिट्टी की गोद में हम भारतवासी बडे आनंद से खेलते कूदते जीते है। अपनी मातृभूमि को देखना कवि के लिए बडी खुशी की बात है।

Para (lll)

                                 इन पंक्तियों में कवि ने  जीवन भर अपने बच्चों को  'सुरससार 'प्रदान करने वाले माता के रूप में  मातृभूमि का चित्रण किया है। जीवन के सब सुख मातृभूमि से स्वीकार करने पर भी उसका प्रत्युपकार करना असंभव है। हमारा यह शरीर मातृभूमि के अन्न -जल से बनाया हुआ है। मातृभूमिका सुरससार  हमारे नस नस में सनी हुई हैअर्थात हमें इस धर्ती का प्यार मिलासंस्कृति   प्राप्त हुईआर्थिक समृद्धी प्राप्त हुईप्राकृतिक सुंदरता और ऋतुओं का अनुग्रह भी इसी मिट्टी से प्राप्त हुआ है। फिर जब मर जाता है तब भी  वही मिट्टी   ,जिसकी गोद में हम लेाट लेाट कर  जिन्दगी शुरु की, वहाँ हम लीन हो जाते है। मातृभूमि  नामक कविता द्वारा कवि बताना चाहते हैं कि  भारत माता की मिटटी के अन्न और जल से बने हमारे शरीर देश की संपत्ति है । भारतवासियों को देश केलिए अपना जीवन समर्पण करना चाहिए।   

            



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