2 मधुऋतु
1 मधुऋतु कविता किसकी रचना है ?
जयशंकर प्रसाद
2 छायावाद के चार स्तंभों प्रमुख कवि कौन है ?
जयशंकर प्रसाद
3 मानवीकरण किस काव्य धारा की विशेषता है ?
छायावादी
4 ‘अरे आ गई है भूली सी यह’ – कौन आ गई है ?
मधुऋतु
5 मधुऋतु किस काव्यधारा की रचना है ?
छायावादी
6 मधुऋतु कितने दिन के लिए आ गई है ?
दो दिन केलिए
7 'नभ' शब्द का समानार्थी शब्द क्या है ?
आकाश
8 नीड़ कहॉ स्थित है ?
धरती और आकाश के बीच
9 झाड़खंड का समानार्थी शब्द क्या है ?
जंगल
10 जंगल के चिर पतझड़ में किनको भाग जाना है ?
सूखे तिनकों को
11 ‘सूखे तिनको’ से क्या तात्पर्य है ?
निराशा
12 वसंत के आगमन पर कौन -सी ऋतु चली जाती है?
शिशिर ऋतू
13 वसंत के आगमन से प्रेमी के मन में किसका अंकुर झूलने लगता है ?
आशा के अंकुर
14 प्रेमिका के कमलनयनों को कौन चूमता है ?
मलयानिल
15. 'नयन' शब्द का समानार्थी शब्द चुनकर लिखिए ।
आँख
16 जवा कुसुम सी ............... खिलेगी। कौन ?
उषा
17 अंधकार के सागर को पारकर कौन आता है ?
शशि किरणे
18 जलधी का अर्थ क्या है ?
समुद्र
19 हिमकणों को कौन रात में छिड़कता है ?
अंतरिक्ष
20 एकांत में कौन बैठे हैं ?
प्रेमी और प्रेमिका
21 छायावाद के चार स्तंभों प्रमुख कवि कौन कौन है ?
महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, जयशंकर प्रसाद और सुमित्रानंदन पंत।
22 पतझड़ (शिशिर) की क्या क्या विशेषताएँ हैं?
झाड़खंड में पतझड़ होता है। तिनके, पत्ते आदि सूखकर नीरस और शुष्क बन जाता है।
23 वसंत की विशेषताएँ क्या क्या होती है?
अंकुर झूलते हैं। पल्लव पुलकित हो जाते हैं। मलयानिल की लहरों से नलिन खिल जाते हैं। जवा कुसुम-सी उषा खिलेगी। अंधकार का जलधि लाँघकर शशि-किरण आती हैं। निशि में अंतरिक्ष मधुर तुहिन छिड़केगा।
24 वसंत किन-किन का प्रतीक हो सकता है?
प्रेम वसंत के आगमन पर सूखे तिनकों को क्या करना है?
कवि कहते हैं कि वसंत के आगमन पर सूखे तिनकों को भागना है क्योंकि वसंत नयी प्रतीक्षा का समय है। और आशा से प्रणयातुर दिल को मोहक और मादक बनानेवाली प्रेयसी का प्रतीक होता है।
25अगर वसंत प्रेम और आशा का प्रतीक है तो पतझड़ किन-किन का प्रतीक हो सकता है?
दुख और निराशा से भरे प्रणयहीन दिलों का प्रतीक होता है।
मधु ऋतू വസന്തഋതു മലയാളം പരിഭാഷ
വസന്തഋതു
വന്നിതാ വാസന്തം വഴിതെറ്റിയെന്ന പോൽ
രണ്ടു നാൾ കൂടുവാനീവഴിയേ
നവ്യ വിഷാദത്തിന് തോഴി നിനക്കായ്
ചെറു കുടിലൊന്നു പണിയട്ടെ ഞാൻ !
മണ്ണിനു മേലെ വിണ്ണിനു കീഴെയായ്
കൂടിതു വേറിട്ട് തന്നെയാണേ.....
പാടെയുണങ്ങിയ പുൽനാമ്പുകൾ നിങ്ങൾ
ശിശിര വനത്തിൽ പോയ് മറയൂ. !
ആശാമുകുളങ്ങൾ ആടിയുലയട്ടെ
പല്ലവം പിന്നെയും പുളകിതമാകട്ടെ
തളിരില നിറയുമീ ചെറുലോകമെന്നൂടെ
യിഷ്ടപ്പെടാത്തവരുണ്ടാകുമോ ?
മലയഗിരി തന്നിലെ മന്ദമാരുതനും
രോമാഞ്ചത്തോടിന്നണയും
മാനസ നയനാംബുജങ്ങളെയാകവെ
ചുംബിച്ചുണർത്തിടും മെല്ലെ ......
ചെമ്മലർ പോലെയുഷസ്സു വിടർന്നിടും
പ്രാചിയിലനുരാഗ വാനതിൽ
ചെഞ്ചുണ്ടിൽ നിറയുന്ന മന്ദസ്മിതങ്ങളിൽ
വാർണാഭമാകും ദിനങ്ങൾ
അന്ധകാരത്തിന്റെ ആഴികടന്നല്ലോ
വന്നെത്തുമിന്ദു കിരണവും
മണ്ണിൻ കണങ്ങളിൽ വാനവും വർഷിക്കും
മഞ്ഞു കണങ്ങൾ നിശീഥിനിയിൽ
ഏകാന്തതയിലൊരുങ്ങുന്ന സൃഷ്ടിയിൽ
വിഘ്നങ്ങൾ ആകരുതാരുമേ
നമ്മിൽ നിറയുന്ന നന്മകൾ മടിയാതെ
നൽകേണമേവർക്കുമല്ലോ ....
मधु ऋतू
जयशंकर
प्रसाद
മലയാളം പരിഭാഷ
ബിന്ദു കെ.
GHSS Manathaia, Thrissur
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